स्पेसवार और भारतीय स्त्रातेजी
डॉ
अमर
सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
रक्षा एवं स्त्रातेजिक अध्ययन विभाग
धर्म समाज महाविद्यालय, अलीगढ़-202001
संक्षेपः
वैश्विक
स्तर पर राष्ट्रों के मध्य अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। शत्रु के
उपग्रह को मार गिराने तथा अपने उपग्रहों को सुरक्षित रखने की क्षमता, राष्ट्रीय
सुरक्षा का प्रमुख आयाम बनता जा रहा है। इसके अंतर्गत बैलेस्टिक मिसाइलों द्वारा
सीधे ऊध्र्वाधर गतिक हमले अथवा लेजर द्वारा शत्रु उपग्रहों को क्षति पहुचाने जैसे
उपक्रम शामिल हैं। चीन द्वारा 2007 में तथा अमेरिका द्वारा 2008
में अंतरिक्ष में उपग्रहों को मार गिराने की क्षमता का प्रदर्शन, इसी
से जुडा़ हुआ है। भारत ने भी इन चुनौतियों को भापते हुए स्पेस में विरोधियों कि
हरकतों पर नजर रखने मिसाइल की पूर्व चेतावनी और दुश्मन देशों की सेटेलाइटों को
निष्क्रिय करने जैसी क्षमता को विकसित करने की पहल कर दी है। इस शोध आलेख के
द्वारा यह जानने का प्रयास किया जायेगा कि क्या वास्तव में स्पेसवार की स्थितिया बन रही है और इन सन्दर्भ में विभिन्न देशों की
क्या तैयारियां है। साथ ही साथ भारत इस संदर्भ में क्या तैयारियां कर रहा है इस का
अध्ययन करेंगे।
प्रस्तावना-
युद्ध मानव स्वभाव का एक महत्वपूर्ण अवयव है।
मनुष्य अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए निरंतर संघर्ष करता रहा हैं। 21वीं
शताब्दी को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की शताब्दी माना जाता है, जिसका
प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों में देखा जा सकता हैं और युद्ध भी उससे अछूता नहीं
हैं। परम्परागत रूप में स्थल, वायु और जल पर ही युद्ध लडे़ जाते रहे
हैं परन्तु ऐसा माना जा रहा है कि भविष्य में होने वाले युद्ध में स्पेस भी
रणक्षेत्र के रूप में प्रयोग किया जायेगा। स्पेस में क्षमताओं को परंपरागत
गैर-परंपरागत युद्धकर्म में स्त्रातेजिक और सामरिक स्तर पर शामिल करने की प्रक्रिया
प्रारंभ हो गई। राष्ट्र अब अपनी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने और क्षमताओं के
संवर्धन के लिए आक्रामक काउंटर स्पेस क्षमताएं विकसित करने के लिए बाध्य हो गए
हैं। स्पेस शक्ति, राष्ट्रीय शक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया हैं। साथ ही साथ
राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आधारभूत सुविधाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हालांकि
स्पेस शक्ति को अभी तक परिभषित नहीं किया जा सका है, सामान्यतः
·
यह स्पेस को प्रयोग करने की कला हैं
जिसके द्वारा राष्ट्र अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त कर सके।
·
स्पेस में अपने को सक्रिय बनाये रखते
हुए स्पेस से, स्पेस में और स्पेस के द्वारा शत्रु की सक्रिय पर निगरानी रखना और
उसे प्रभावित करने की क्षमता।1
Colin Gray के
अनुसार स्पेस शक्ति ‘‘किसी राष्ट्र की वह क्षमता है जो उसे स्पेस के स्वंय उपयोग
तथा शत्रु राष्ट्र को उसके उपयोग से वंचित करने की योग्यता हैं।’’ यह एक
वास्तविकता है कि संघर्ष के दौरान अथवा आपसी तनाव की स्थिति में किसी देश के
उपग्रह पर हमला युद्ध की स्थिति को पैदा कर सकता हैं। सेटेलाइट का हथियार के रूप
में प्रयोग प्रतिकूल, घातक और अस्थिरता उत्पन्न करने वाला हो सकता है क्योंकि वर्तमान
संचार और इन्टरनेट क्रांति सेटेलाइट पर आधारित हैं। संचार क्रांति के बाद विश्व की
लगभग सभी महत्वपूर्ण आधारभूत सुविधाए यथा संचार, मौसम की जानकारी,
मनोरंजन,
ग्लोबल
पोजीशनिंग, यातायात के साथ ही साथ वित्तीय, जलयान, वायुयान,
संचालन
एवं सैन्य गतिविधिया उपग्रहों पर ही आधारित हैं। ऐसे में दुश्मन देश के उपग्रहों
को निशाना बनाकर उसे घुटने टेकने पर विवश किया जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि
स्पेस भविष्य के युद्धक्षेत्र में परिवर्तित हो सकता हैं।2 स्पेस वार की निम्न स्त्रातेजी संभव हैः
·
शत्रु को धोखा देना ताकि उसकी
प्रतिक्रिया भी उनको हानि पहुचाने वाली हो।
·
शत्रु की ताकत को विघटित करना, उसकी
प्रतिक्रिया को निषेध करना या निम्नीकृत करना ताकि वो अपनी स्पेस क्षमता का स्थायी
या अस्थायी रूप से प्रयोग न कर पाए।
·
शत्रु की सम्पूर्ण रूप स्पेस आधारित
क्षमता को नष्ट करना।
·
आक्रामक शत्रु के विरूद्ध स्पेस में या
धरती पर प्रतिरोधी वायु रक्षा कवच विकसित करना।3
विश्व के प्रमुख
देश स्पेसवार अंतरिक्ष में जंग के लिए खुद को तैयार करने में तेजी से जुटे हैं।
अमेरिका ने अपने उपग्रहों की सुरक्षा के लिए अंतरिक्ष कमान स्थापित की वर्तमान में
चार देशों के पास मिलिट्री स्पेस कमांड है, चीन-पीपुल्स
लिबरेशन आर्मी स्त्रातजिक सपोर्ट फोर्स, रूस- रूसी
एयरोस्पेस फोर्सेज, फ्रांस- फ्रेंच ज्वांइट कमांड तथा इंग्लैंड- रायल एयर फोर्स एयर
कमांड। इन सभी बलों का काम अंतरिक्ष में अपने देश के उपग्रहों की सुरक्षा करना तथा
मिसाइलों से होने वाले हमले की निगरानी करना है।
चीन और रूस की सैन्य डाक्ट्रिन से भी यह प्रदर्शित होता है कि वह स्पेस को
एक महत्वपूर्ण आधुनिक युद्धकर्म और काउंटर-स्पेस क्षमता के रूप में देखते हैं। इस
सन्दर्भ में भारत की चिंताओं का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं की चीन के शांतिपूर्ण
उदय का मिथक का टूट चुका है।4 चीन द्वारा अन्य देशों को बाध्य करने की नीति
अथवा वुल्फ वोर्रिओर “wolf-warrior” विदेशनीति का
प्रयोग किया जा रहा है, जिसमें दक्षिण चीन सागर पर पूर्ण अधिकार जमाना, पूर्वी
चीनी सागर में नौ सैनिक गश्तों को बढा़ना एवं भारत-चीन सीमा पर बडी़ संख्या में
सैनिकों की तैनाती, जैसी कार्यवाहियां इस सम्पूर्ण क्षेत्र के जहा एक ओर संतुलन को बिगाड़
रहा है वहीं पर भारत के लिए बडी़ चुनौती बन कर उभरी है। 5
भारत
ने भी पिछले कुछ दशकों से स्पेस के क्षेत्र में अपने आप को एक महत्वपूर्ण शक्ति के
रूप में स्थापित किया है। वस्तुतः भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम लोगों के सामाजिक और
आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए प्रारंभ हुआ था परंतु बदली हुई परिस्थितियों
में रक्षा और सैन्य क्षेत्र में स्पेस के उपयोग को भारतीय रणनीतिकार महत्वपूर्ण
मानने लगे हैं।6 भारत ने इसे ध्यान में रखते हुए ‘मिशन शक्ति’ के तहत 27
मार्च, 2019 को एक स्वदेशी एंटीसैटेलाइट मिसाइल से 300 किलोमीटर दूर
अंतरिक्ष की निचली कक्षा में तैनात अपने एक सक्रिय उपग्रह ‘माइक्रोसैट-आर’ को मार
गिराया। इस प्रकार भारत दुनिया का चैथा देश बन गया, जिसके पास यह
क्षमता है। साथ ही साथ भारत ने 11 जून, 2019 को अंतरिक्ष
में जंग की स्थिति में सुरक्षा बलों की ताकत बढा़ने के लिए एक नई एजेंसी ‘‘डिफेंस
स्पेस रिसर्च एजेंसी’’ (DSRO: डी.एस.आर.ओ.)
बनाने की मंजूरी दी है।7
वैश्विक चिंताः
स्पेसयुद्ध
के हथियार राष्ट्रीय सुरक्षा को एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आये हैं।
अमेरिका, रूस, चीन और भारत ने अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रह को धरती से मिसाइल
प्रक्षेपित करके नष्ट कर अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर दिया हैं। विश्लेषकों का यह
मत है कि इन देशों द्वारा इस क्षमता की प्रदर्शन वास्तव में अपने अंतरक्षीय
हथियारों का परीक्षण करना था। वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष को युद्ध क्षेत्र में
परिवर्तित करने की संभावना से यह कार्रवाई सवालों के घेरे में आ चुकी है और इसका
भारी विरोध भी हो रहा है। यौद्धिक दृष्टि से इतर भी इसके विरोध का एक और
महत्वपूर्ण कारण अंतरिक्ष कचरे से भी संबंधित है। खगोलविज्ञानियों का ऐसा मत हैं कि
अंतरिक्ष में कचरा पहले से ही एक गंभीर समस्या बना हुआ है और स्पेस में सैटेलाइटों
को नष्ट करने से ये और बढ़ गया है। उपरोक्त दोनों ही मुद्दे किसी देश की सुरक्षा के
लिए घातक हो सकते है। वेपनाइजेशन (आउटर स्पेस में अपने हथियार तैनात करना) और
मिलिटराइजेशन (सेटेलाइट का इस्तेमाल गाइडेड हथियार की तरह करना जो टारगेट को नष्ट
कर सके) के बीच का अंतर अब धुंधला हो रहा है। भविष्य में होने वाले विवादों में
आधुनिक स्पेस तकनीक किसी भी देश को दूसरे के मुकाबले ताकत दे सकती है।8 रक्षा
और नागरिक क्षेत्र में उपग्रहों का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। अतः जहा पर इन
उपग्रहों को किसी खतरे से बचाना राष्ट्रों का महत्वपूर्ण हित बन गया है, वही
पर विभिन्न दशों के साथ मिलकर बाह्य आकाश के संदर्भ में विधि निर्माण करना एक
प्रमुख आवश्यकता बन कर उभर रहा है। बिना किसी वैश्विक वैधानिक नियमों के चलते
स्पेस का शस्त्रीकरण रोकपाना वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है।
वायुमंडल
में अपने उपग्रहों को सुरक्षित रखते हुए शत्रु के उपग्रहों को नष्ट करने की क्षमता
ही ASAT
(Anti- Satellite Test) का मूल है और इसकी संपूर्ण व्यवस्था कई उपक्रमों से मिलकर बनी हैं।
जिसमें मिसाइल, लेजर, ऊर्जा तरंगे, विद्युत चुंबकीय तरंग और छोटे उपग्रह
शामिल है। यह वायुमंडल से अथवा स्थल दोनों से ही प्रक्षेपित किये जा सकते हैं।
किसी उपग्रह को स्पेस में मिसाइल से मार गिराना अत्यंत उत्कृष्ट वैज्ञानिक क्षमता
का परिचायक है, क्योंकि ये उपग्रह छोटे लक्ष्य होते हैं। साथ ही ये बडी़ तेजी से (8
किलोमीटर/सेकंड) की गति से पृथ्वी की कक्षा में घूमते हैं, जिसमें इनको
सटीक निशाना बनाना अत्यंत कठिन होता है। वर्तमान में 4 देश ही इस में
सफलता प्राप्त कर पाए हैं।
साइबर स्पेस खतरेः
विभिन्न
संचार क्रियाएं साइबर स्पेस पर ही आधारित हैं अतः साइबर स्पेस परम्परागत युद्ध
क्षेत्रों को प्रभावित करने की भी क्षमता रखता है। उपग्रहों के माध्यम से स्पेस
प्रणाली से जुडा़ विशिष्ट ज्ञान, कमांड तथा कंट्रोल एवं डेटा वितरण
प्रणाली द्वारा कोई भी देश विभिन्न प्रकार की प्रतिकारी गतिविधियों को अंजाम दे
सकता है। इसका गंभीर प्रभाव भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर को क्षति पहुॅचाने के साथ ही
साथ उपभोक्ता अर्थात नागरिकों पर भी पड़ता है। स्पेस युद्ध के निम्नलिखित हथियार
संभव हो सकते हैं।
·
निर्देशित ऊर्जा हथियार (Directed
Energy Weapons): यह दुश्मन के उपग्रह और उससे संबद्ध सुविधाओं को निर्देशित ऊर्जा के
द्वारा बाधित, क्षति अथवा नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। इस हथियार की प्रभावशीलता
स्थाई-अस्थाई दोनों प्रकार की हो सकती है। इसमें लेजर, ऊर्जा शक्ति,
माइक्रोवेब
और अन्य प्रकार के रेडियो फ्रिकवेंसी हथियार शामिल हैं। इस प्रकार के हथियारों का
प्रयोग किसने और कहा से किया गया अर्थात इनका स्रोत दूंढ पाना मुश्किल होता हैं।9
·
गतिज ऊर्जा खतरे (Kinetic
Energy Threats): गतिज ऊर्जा खतरे या प्रति-उपग्रह प्रणाली (ASAT)
हथियारों को अथवा उसके किसी अंग को स्पेस में तैनात किए बिना उपग्रहों को नष्ट
करने की क्षमता को दर्शाता है। इस प्रणाली में स्थाई का सचल लांच (विमानों द्वारा)
व्यवस्था से मिसाइल को छोडा़ जाता है। प्रक्षेपित होने के बाद ये आनबोर्ड कंप्यूटर
द्वारा अपने लक्ष्य को ढूंढ़ निकालते हैं और टक्कर द्वारा ही शत्रु उपग्रह को नष्ट
कर देते हैं। पृथ्वी पर स्थापित ASAT
प्रणाली अन्य काउंटर स्पेस हथियारों की तुलना में सरल होता है। परंतु इसके प्रयोग
से स्पेस में कचरा भी बनाता है।10
·
आर्बिटल खतरे (Orbital
Threats): आर्बिटल (परिक्रमा पथ सम्बन्धी) आधारित प्रणाली में वे उपग्रह हैं जो
शत्रु वायुयानों अथवा उपग्रहों के विरूद्ध स्थाई या अस्थाई प्रभाव डाल सकते हैं।
इस प्रणाली में निम्न पेलोड्स शामिल है-गतिज मारक वाहन, रेडियो
फ्रीकेंसी जैमर, लेजर, रासायनिक छिड़काव, उच्च-शक्ति माइक्रोवेव और रोबोटिक आर्म
शामिल है। इनमें से कुछ जैसे कि रोबोटिक आर्म का प्रयोग उपग्रहों के रख रखाव और
अंतरिक्ष कचरे को साफ करने में भी हो सकता है।11
·
माइक्रो सेट और नानोसेट (Microset
and Nanoset): माइक्रो
और नैनो उपग्रह लम्बे समय तक आॅर्बिट में रह सकने वाली उच्च तकनीकी युक्त होते हैं
जो बहुत सस्ते में बनाये जा सकते हैं। साथ ही इनको स्पेस में किसी भी देश द्वारा
भेजा और लम्बे समय तक रखा जा सकता है। माइक्रो सेट 10 से 1200
किलोग्राम तक के होते है जिनको कहीं से भी लांच किया जा सकता है। छोटा होने के
कारण इनके स्रोत को खोजना भी कठिन होता है। नैनो सेट तो और भी छोटे होते हैं,
इनका
वनज 1 से 10 किलो के मध्य होता हैं। यह भी बहुत कम खर्च में बन जाते हैं साथ ही
इनको आसानी से लांच किया जा सकता हैं। इनको सामान्य उपग्रहों में छुपाना भी आसन
होता है। नैनो सेट का चीनी कोड नाम ‘परजीबी उपग्रह’ (Parasitic
Satellite) है, ये शत्रु उपग्रह के साथ चिपक जाते हैं और जब हमला करना हो तब पृथ्वी
से निर्देशित होने पर सक्रिय हो कर स्वय नष्ट होकर शत्रु उपग्रह को भी नष्ट कर
देते हैं। माइक्रो सेट की तरह ही नैनो सेट भी छोटे होने के कारण प्रयोग के बाद
उनके स्रोत का पता नहीं लग पता हैं।
·
रेडिओ फ्रीकुएन्सी (Radio
Friquency): इसके अंतर्गत उच्च शक्ति की रेडिओ फ्रीकुएन्सी और बडे़ एंटीने का
प्रयोग किया जाता है। जिसके द्वारा एक उच्च संकेंद्रित इलेक्ट्रो मैग्रेटिक
रेडिएशन को धरती पर स्थित लक्ष्यों पर निर्देर्शित किया जाता है जिससे शत्रु संचार
तंत्र निष्क्रिय हो जाता है। जिससे अत्यंत सुरक्षित होने के बाद भी आक्रमण करने
वाला गलत सूचना प्रसारित करने में सक्षम होता है।12
वेश्विक स्त्रातेजिक परिदृश्यः
संयुक्त राज्य
अमेरिका- पूर्व अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर के अनुसार ‘‘अंतरक्षीय
क्षमताओं पर हमारी निर्भरता बहुत तेजी से बढी़ है और आज बाहरी अंतरिक्ष अपने आप
में युद्ध क्षेत्र में तबदील हो गया हैं।’’ अंतरिक्ष में चीन और रूस की बढ़ती
दखलअंदाजी से चिंतित और भविष्य के खतरे को देखते हुए अमेरिका ने अपनी तैयारियों को
धार देना शुरू कर दिया है। इस सन्दर्भ में अमेरिका ने नौ सेना, थल
सेना, मरीन कॉर्पस, एयर फोर्स और कोस्ट गार्ड के बाद छठे सशस्त्र बल के रूप
में ‘‘स्पेस फोर्स’’ का गठन किया है ताकि स्पेस में उसका दबदबा कायम रह सके।13
अमेरिका
ने अन्तरिक्ष और उपग्रहों के सन्दर्भ में शोधकार्य तभी से शुरू कर दिया था जब रूस
ने वर्ष 1957 में अपना पहला उपग्रह ‘स्पुतनिक-1’ अंतरिक्ष में
भेजा था। शीत युद्ध के दौरान रूस और अमेरिका में इस क्षेत्र में आगे बढा़ और एक
दूसरे को पीछे छोड़ने की कोशिश होती रही। शीघ्र ही दोनों देशों ने उपग्रह को स्पेस
में नष्ट करने की क्षमता प्राप्त कर ली। इस सन्दर्भ में अमेरिका ने 13
सितम्बर 1985 को ही अपना अंतिम उपग्रह भेदी परीक्षण किया था। इसके बाद अमेरिका ने
यह कहकर इस पर रोक लगा दी थी कि नष्ट हुए उपग्रह के टुकडे़ दूसरे उपग्रहों को
नुकसान पहुॅचा सकते हैं। चीन और रूस द्वारा हाल में स्पेस में उपग्रह मार गिराने
की घटना ने पुनः स्पेस में खतरे के प्रति अमेरिकी संवेदना को बढा़ दिया है। इसे
देखते हुए 2008 में “Operation Brunt Frost” के अंतर्गत स्पेस में मिसाइल
द्वारा उपग्रह नष्ट कर अपनी क्षमता का
प्रदर्शन किया। अमेरिका द्वारा 2015 में पुनः एंटी सेटेलाइट मिसाइल का सफल
परीक्षण किया गया। इसी सन्दर्भ में 2020 में पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने 2020
राष्ट्रपति रक्षा प्राधिकरण कानून द्वारा अंतरिक्ष बल का गठन कर दिया हैं।14 यूएस स्पेस कमांड के मेजर जनरल टिम लोसॉन ने कहा है कि ‘अमेरिका ने इसके लिए
‘‘ब्लैक बजट प्रोजेक्ट’’ को शुरू किया है।’’
जिसमें स्पेस कमांड को मजबूती देने के लिए कई नए हथियारों को विकसित करने
के अलावा तेजी से अपनी रक्षा क्षमताओं को बढा़ना भी शामिल है।
चीन-
चीन अपने आर्थिक और राजनीतिक संसाधनों का एक महत्वपूर्ण भाग अंतरिक्ष
प्रणाली-उपग्रह प्रणाली, चंद्र मिशन और अंतरिक्ष में मानव को
भेजने में कर रहा है। चीन के स्पेस प्रोग्राम में 22 जनवरी 2007 का
दिन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा जब चीन ने अपनी मिसाइल के द्वारा अन्तरिक्ष में 800
कि. मी. दूर स्थित “Feng Yun I C Polar Orbit” नामक
एक पुराने मौसम उपग्रह को मार गिराया गया जिससे भरी मात्रा में स्पेस कचरा भी बना।
पेंटागन की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (डीआईए) ने Space Threat से संबंधित एक रिपोर्ट में यह बताया
हैं कि चीनी सेना द्वारा ‘लो आरबिट अर्थ’ में स्थित सैटेलाइटस को नष्ट करने या
नुकसान पहुचाने में सक्षम लेजर हथियार की तैनाती शीघ्र करने की उम्मीद है। साथ ही
साथ ये भी खुलासा किया गया था कि चीन स्पेस वारफेयर को ध्यान में रखते हुए कई
हथियारों को बनाने में लगा हुआ है जिसमें एंटी-सैटेलाइट जैमर, साइबर
छोटे हमलावर उपग्रह शामिल हैं। जिन्हें बीजिंगयुद्ध के दौरान अमेरिकी सेटेलाइट्स
के खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है।15 2015 से चीनी सेना
में रिफार्म प्रक्रिया शुरू हुयी, जिसके अन्तर्गत चीन ने ‘स्त्रातेजिक
सहायक सेना’ का गठन किया है। जिसका लक्ष्य साइबर स्पेस, स्पेस और ऊर्जा
तरंगों से संबंधित तकनीकों का उपयोग संयुक्त सैन्य आपरेशनों में करने की क्षमता को
विकसित करना हैं। चीन के पास अंतरिक्ष में निरानी रखने की वर्तमान में उच्च स्तरीय
व्यवस्था है, जिसमें पृथ्वी की कक्षा में स्थित किसी उपग्रह को ढूंढ़ने नजर रखने और
उसकी विशेषता की पहचान करने की क्षमता शामिल है। इस प्रकार चीन वैश्विक स्तर पर एक
स्पेस शक्ति के रूप में अपने को स्थापित कर रहा हैं, जो भारत और
अमेरिका दोनों के लिए चिंता का विषय बन गया हैं।
रूस-
रूसी स्पेस कार्यक्रम, विश्व में लंबे समय से चले आ रहे प्रतिष्ठा अथवा श्रेष्ठा की स्थापना
के लिए प्रतियोगिता के रूप में देखा जा सकता है। रूस स्पेस के क्षेत्र में 1957 से
(स्पूतनिक-1) एक शक्ति रहा है। रूसी सैन्य डाक्ट्रिन तथा विचारक स्पेस को एक युद्ध
क्षेत्र के रूप में मानते हैं, इनके अनुसार भविष्य के युद्धों में
स्पेस श्रेष्ठता निर्णायक भूमिका निभाएंगे। रूस शीतयुद्ध काल से ही स्पेस
कार्यक्रम, संचार उपग्रह और मिसाइल प्रणाली में अग्रणी राष्ट्र रहा हैं। 2015
में रूस ने अपनी वायु सेना और एयरो-स्पेस रक्षा बल को मिलाकर ‘एयरो स्पेस फोर्स’
का निर्माण किया हैं। रूस अपने आन-आर्बिट सिस्टम द्वारा अमेरिकी उपग्रहों को कभी
भी निशाना बना सकते हैं। 15 जुलाई 2020 को रूसी उपग्रह
ने एक मिसाइल के आकार के प्रक्षेपक द्वारा एक दूसरे उपग्रह को निशाना बनाया। इसी
वर्ष रूस का कोस्मोस 2542 सैटेलाइट अमेरिकी टोही सैटेलाइट KH-11
के पास पहुचा गया था, जिसके बाद अमेरिका ने खतरे की चेतावनी
जारी की दी। रूस ने बीते दिनों अंतरिक्ष से संचालित होने वाले अपने मिसाइल
वार्निंग सिस्टम ‘कुपोल’ (गुबंद) को भी शुरू किया है।16 यह अंतरिक्ष से
ही बैलेस्टिक मिसाइल के छोडे़ जाने वाले स्थान पर नजर रखेगा। इस प्रकार रूस स्पेस
में अपने दबदबे को बनायो रखना चाहता हैं।
भारत की तैयारीः
भारत
ने हाल के घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए स्पेस वार के खतरे पर फोकस किया है। चीन
द्वारा अपनी मिसाइलों द्वारा उपग्रहों को मार गिराने की घटना तथा अमेरिका द्वारा
स्पेस फोर्स के गठन ने इस फैसले के पीछे प्रेरक का कार्य किया है। प्रारंभ में
हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम का फोकस दूरसंचार और मौसम की भविष्यवाणी जैसे मामलों तक
ही सीमित था, पर वर्तमान परिपेक्ष्य में यह आवश्यक हो गया है कि इस उपग्रह प्रणाली
का प्रयोग सुरक्षा के मामले में भी हो। इस संदर्भ में ‘मिशन शक्ति’ नामक एक
महत्वकांक्षी योजना बनाई गयी। जिसके के तहत एक विश्वसनीय काउंटर-स्पेस क्षमता
विकसित करने की कोशिश की जा रही हैं। इसी क्रम में भारत ने 27
मार्च 2020 को कम वनज वाली पृथ्वी की निम्न कक्षा में 283 किमी की ऊॅचाई
पर 740 किलोग्राम की माइक्रोसेट-आर उपग्रह को नष्ट करने के लिए 19-टन
की इंटरसेप्टर मिसाइल ‘Prithvi Defence Vehicle Mark-II”, कर नष्ट कर दिया। इस परीक्षण में सफलता
से भारत अंतरिक्ष में किसी सैटेलाइट को निशाना बना कर उसे ध्वस्त करने की क्षमता
रखने वाला चैथा देश बना गया हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर कहा की,
‘‘भारत
किसी देश को इसका निशाना नहीं बनाएगा न ही किसी को लक्ष्य में रख कर यह हथियार
तैयार किया गया है।’’17 हालाकि भारत को टक्कर देने के लिए चीन लगातार
अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइट को नष्ट करने की ताकत रखने वाली मिसाइलों के साथ ही
नान-काइनेटिक साइबर हथियारों जैसे लेजर और इलेक्ट्रो मैग्रेटिव प्लस जैसे हथियारों
का जखीरा बढा़ रहा है और यह भारत के लिए चिंता का विषय हैं। भारत को अपनी स्पेस
क्षमताओं को बढा़ने के लिए निम्न प्रयास करने की आवश्यकता हैः
·
स्वतंत्र स्पेस कमांड बनाए, जिसमें
तीनों सेनाओं और ISRO का योगदान होना चाहिए।
·
सैन्य क्षेत्र में प्रयोग हेतु
उपग्रहों के प्रक्षेपण करने और उनके प्रबंधन की अलग व्यवस्था एवं स्पेस आधारित
आधारभूत सुविधाओं को सुरक्षित रखना।
·
स्वंय के नेविगेशन प्रणाली और स्वतंत्र
ग्लोबल पोजिशनिंग प्रणाली को विकसित करने की आवश्यकता।
·
स्पेस में होने वाली विभिन्न घटनाओं की
निगरानी को बढा़ना, जिसके अंतर्गत शत्रु तथा आकाशीय पिंडो पर निगरानी और ट्रैकिंग की
प्रणाली।
·
स्पेस डेबरिस या स्पेस कचरे को ट्रैक
करने तथा उससे सम्बन्धित अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने की आवश्यकता।
·
भारत को स्पेस हथियारों के विकास के
सन्दर्भ में ‘‘निश्चित क्षमता’’ को विकसित करना।
·
इस क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिए
प्रशिक्षित मानव पूजी को भी विकसित करने की आवश्यकता है।
इसी सन्दर्भ में
भारत ने स्पेस युद्ध की स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक नई एजेंसी ‘डिफेंस
अंतरिक्ष रिसर्च एजेंसी’ (DSRO- Defence Space Research Origination)
बनायी है। जिसका उद्देश्य, इस प्रकार के हथियारों और तकनीक को
विकसित करना हैं जो शत्रु की स्पेस क्षमताओं को निषेध करने, निम्नीकृत करने,
बाधित
करने, नष्ट करने और धोखा देने में सक्षम हो।18 अमेरिका के बाद
ऐसा करने वाला भारत दूसरा देश है। इसके साथ ही भारत ने पहली बार स्पेस वारफेयर
एक्सरसाइज 25 और 26 जुलाई 2020 को किया। इसके द्वारा संयुक्त स्पेस
सिद्धांत (जाइंट स्पेस डॉक्टरिन )
भी तैयार किया जा रहा हैं, जो भविष्य के संभावित युद्धों से
निपटने की तैयारी में महत्वपूर्ण होगा।
आगे की राह-
बाह्य आकाश भविष्य की सैन्य अभिसंरचना और युद्धकर्म का महत्वपूर्ण अंग है। वर्तमान
में सेटेलाइट से कम्युनिकेशन, नेविगेशन और सर्वलेंस सब कुछ हो रहा
हैं सैन्य क्षेत्र में क्रांति के परिपेक्ष में नेटवर्क केंद्रित युद्धकला इसी पर
आधारित है जिसमें-सैनिकों, हथियारों, कमांडरों और
सहायक अंगों के मध्य सभी स्तर पर समरूपता और उत्तरजीविता होनी चाहिए, जो
उपग्रह आधारित संचार और नेविगेशन पर ही आधारित है। ASAT की
क्षमता यहीं पर महत्वपूर्ण बन जाती हैं जो शत्रु के उपग्रहों को मार गिराने और
अपने को सुरक्षित बनाए रखने पर केंद्रित है। स्पेस एक युद्ध स्थल के रूप में तेजी
से उभर कर सामने आ रहा हैं जहा पर अमेरिका, रूस तथा चीन
जैसी स्पेस शक्तियां अपने सैन्य स्पेस कार्यक्रम को पुनः व्यवस्थित कर रही हैं।
भारत की रक्षा चिंता पाकिस्तान तथा चीन
से ही प्रमुख रूप से जुडी़ है। स्पेस में पाकिस्तान की क्षमता ज्यादा नहीं परंतु
चीन स्पेस पावर के रूप में तेजी से उभर रहा है। लम्बे समय से चीन के साथ भारत का
सीमा विवाद बना हुआ हैं और हाल ही में गलवान घाटी की घटना ने भारत के लिए
चुनौतियों को बढा़ दिया है। ASAT का
यह कार्यक्रम इसी चुनौती को संदर्भित है। मिशन शक्ति के द्वारा भारत ने ASAT क्षमता
का प्रदर्शन कर अपने को विश्व के शीर्ष देशों में शामिल कर लिया है, जिनके
पास ये प्रतिरोधक क्षमता है। भारत स्पेस ऐसैट्स को संरक्षित करने तथा अपनी
क्षमताओं को और अधिक विकसित करने के लिए प्रयासरत हैं। उपग्रहों की सुरक्षा अब देश
के राष्ट्रीय सुरक्षा से जुडा़ हुआ मामला हो गया है। विभिन्न देश आउटर स्पेस में
अपने हथियार तैनात कर रहे हैं स्पेस के इस तरह वेपनाइजेशन हथियार तैनात करने को
मौजूदा संधियां रोक नहीं पा रही हैं इसे देखते हुए स्पेस में तैनाती और वैश्विक
स्तर पर इस के संदर्भ में नीति निर्माण की प्रक्रिया को बल देने की आवश्यकता हैं।
संदर्भ सूची :
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